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मध्यप्रदेश में राजनीति का तख्ता पलटने वाले किसानों की हालत इन दिनों बेहद नाजुक है. लहसुन की खेती करने वाले किसानों को शिवराज के राज में 3 रुपये किलो से भी कम भाव मिल रहा है. किसानों का फसल लाने का भाड़ा तक नहीं निकल पा रहा है. ऐसी स्थिति में किसान बेहद दुखी और चिंतित हैं. लहसुन की खेती किसानों के लिए कई बार वरदान साबित हो चुकी है लेकिन इस बार लहसुन की खेती का श्राप किसान कभी नहीं भूल पाएंगे. उज्जैन जिले ही नहीं बल्कि संभाग में लहसुन की खेती करने वाले किसानों को इन दिनों बेहद मुश्किल दौर से गुजरना पड़ रहा है.
किसानों का भाड़ा निकलना भी हुआ मुश्किल
कई किसानों का तो गांव से फसल मंडी तक लाने का भाड़ा भी नहीं मिल पा रहा है. सोढंग के रहने वाले किसान देवी सिंह ने बताया कि उन्होंने कई सपने संजोकर लहसुन की खेती की थी, मगर जब वह मंडी पहुंचे तो उनके सारे अरमानों पर पानी फिर गया. उज्जैन की मंडी में ₹285 क्विंटल के हिसाब से उनकी 5 क्विंटल लहसुन बिकी है. उन्हें 5 क्विंटल लहसुन गांव से मंडी तक लाने में ₹1000 का खर्च आया है जबकि इतनी ही राशि लहसुन बेचकर मिली है. उन्हें लहसुन की खेती में भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.
शाजापुर जिले के आनंदपुर गांव में रहने वाले किसान हरि सिंह ने बताया कि उन्हें 3 रुपये 15 पैसे प्रति क्विंटल के हिसाब से लहसुन बेचना पड़ा हैं. उन्होंने 8000 रुपये क्विंटल के हिसाब से बीज खरीदा था. इसके अलावा 1 बीघा जमीन पर लगभग 25, 000रुपये का खर्च फसल उगाने में आया. इसके एवज में उन्हें फसल बेचने पर 7000 की राशि प्राप्त हुई है इस प्रकार होने प्रति बीघा के हिसाब से 18, 000 रुपये का नुकसान हुआ है.
इसलिए किसानों को नहीं मिल पा रहे हैं भाव
वैसे गर्मी के दिनों में लहसुन का उपयोग थोड़ा कम हो जाता है इसलिए मांग घट जाती है. पिछले कुछ सालों से लहसुन का भाव अधिक होने की वजह से अधिकांश किसान लहसुन की खेती करने लगे हैं. ऐसी स्थिति में मंडियों में लहसुन की भरमार आवक हो रही है. इसके चलते भी भाव पर असर पड़ा है. किसान यह भी बताते हैं कि इस बार बीमारी के चलते लहसुन की फसल खराब भी हुई है, जिसका असर भी भाव पर पड़ रहा है. इन सब कारणों की वजह से किसानों को लहसुन की खेती भारी पड़ रही है.
मध्यप्रदेश में राजनीति का तख्ता पलटने वाले किसानों की हालत इन दिनों बेहद नाजुक है. लहसुन की खेती करने वाले किसानों को शिवराज के राज में 3 रुपये किलो से भी कम भाव मिल रहा है. किसानों का फसल लाने का भाड़ा तक नहीं निकल पा रहा है. ऐसी स्थिति में किसान बेहद दुखी और चिंतित हैं. लहसुन की खेती किसानों के लिए कई बार वरदान साबित हो चुकी है लेकिन इस बार लहसुन की खेती का श्राप किसान कभी नहीं भूल पाएंगे. उज्जैन जिले ही नहीं बल्कि संभाग में लहसुन की खेती करने वाले किसानों को इन दिनों बेहद मुश्किल दौर से गुजरना पड़ रहा है.
किसानों का भाड़ा निकलना भी हुआ मुश्किल
कई किसानों का तो गांव से फसल मंडी तक लाने का भाड़ा भी नहीं मिल पा रहा है. सोढंग के रहने वाले किसान देवी सिंह ने बताया कि उन्होंने कई सपने संजोकर लहसुन की खेती की थी, मगर जब वह मंडी पहुंचे तो उनके सारे अरमानों पर पानी फिर गया. उज्जैन की मंडी में ₹285 क्विंटल के हिसाब से उनकी 5 क्विंटल लहसुन बिकी है. उन्हें 5 क्विंटल लहसुन गांव से मंडी तक लाने में ₹1000 का खर्च आया है जबकि इतनी ही राशि लहसुन बेचकर मिली है. उन्हें लहसुन की खेती में भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.
शाजापुर जिले के आनंदपुर गांव में रहने वाले किसान हरि सिंह ने बताया कि उन्हें 3 रुपये 15 पैसे प्रति क्विंटल के हिसाब से लहसुन बेचना पड़ा हैं. उन्होंने 8000 रुपये क्विंटल के हिसाब से बीज खरीदा था. इसके अलावा 1 बीघा जमीन पर लगभग 25, 000रुपये का खर्च फसल उगाने में आया. इसके एवज में उन्हें फसल बेचने पर 7000 की राशि प्राप्त हुई है इस प्रकार होने प्रति बीघा के हिसाब से 18, 000 रुपये का नुकसान हुआ है.
इसलिए किसानों को नहीं मिल पा रहे हैं भाव
वैसे गर्मी के दिनों में लहसुन का उपयोग थोड़ा कम हो जाता है इसलिए मांग घट जाती है. पिछले कुछ सालों से लहसुन का भाव अधिक होने की वजह से अधिकांश किसान लहसुन की खेती करने लगे हैं. ऐसी स्थिति में मंडियों में लहसुन की भरमार आवक हो रही है. इसके चलते भी भाव पर असर पड़ा है. किसान यह भी बताते हैं कि इस बार बीमारी के चलते लहसुन की फसल खराब भी हुई है, जिसका असर भी भाव पर पड़ रहा है. इन सब कारणों की वजह से किसानों को लहसुन की खेती भारी पड़ रही है.
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