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अब समान नागरिक संहिता की बारी? | Matrabhumi with Shobhna Yadav | Uniform Civil Code | ABP News

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उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में समान नागरिक संहिता लागू करने की बातें होने लगी हैं. सुप्रीम कोर्ट भी कई बार देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत की बात कर चुका है. सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि भारत में अब तक यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया. जबकि संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 44 में नीति निदेशक तत्व के तहत उम्मीद जताई थी कि भविष्य में ऐसा किया जाएगा. इस लेख में हम इससे जुड़े अलग-अलग पहलुओं की चर्चा करेंगे.

यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम. दूसरे शब्दों में कहें तो परिवार के सदस्यों के आपसी संबंध और अधिकारों को लेकर समानता. इस वक्त हमारे देश में धर्म और परंपरा के नाम पर अलग नियमों को मानने की छूट है. जैसे- किसी समुदाय में बच्चा गोद लेने पर रोक है. किसी समुदाय में पुरुषों को कई शादी करने की इजाज़त है. कहीं-कहीं विवाहित महिलाओं को पिता की संपत्ति में हिस्सा न देने का नियम है. यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने पर किसी समुदाय विशेष के लिए अलग से नियम नहीं होंगे.

यूनिफॉर्म सिविल कोड का ये मतलब कतई नहीं है कि इसकी वजह से विवाह मौलवी या पंडित नहीं करवाएंगे. ये परंपराएं बदस्तूर बनी रहेंगी. नागरिकों के खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर इसका कोई असर नहीं होगा. ये अलग बात है कि धार्मिक कट्टरपंथी इसे सीधे धर्म पर हमले की तरह पेश करते रहे हैं.
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Asia
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