LIVE: अबकी बार OBC वोट जाएगा किसके पास? | UP Elections 2022 | Hindi News | Breaking News
#UPElections2022 #OBC #BJP #Congress #SP #RLD
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले सियासी दलों की नजर पिछड़ा वोट बैंक पर है. सभी राजनीतिक पार्टियां 52 फ़ीसदी वोट बैंक वाले पिछड़ा समाज को अपने पाले में लाने में जुटे हुए हैं. इसके लिए हर पार्टी ने अपनी अलग रणनीति तैयार की है, कोई जिले में सम्मेलन कर रहा है तो कोई लखनऊ में ही ओबीसी की सभी जातियों के सम्मेलन करने में जुटा है. हालांकि मकसद सबका एक ही है कि कैसे चुनाव से पहले अन्य पिछड़ा जाति को अपने साथ जोड़ा जाए और सत्ता पर काबिज हुआ जाए.
अंबेडकर नगर में अखिलेश यादव ने पिछड़ों को लेकर नया नारा बुलंद किया
अंबेडकरनगर में रविवार को अखिलेश यादव भीड़ देखकर इतने गदगद हुए कि उन्होंने एक नया नारा ही दे दिया अखिलेश यादव ने कहा पिछड़ा का इंकलाब होगा, 2022 में बदलाव होगा. दरअसल इस नारे के पीछे ही अखिलेश यादव की रणनीति भी छुपी हुई है.
इस बार चुनाव में अखिलेश यादव की कोशिश है कि कैसे पिछड़ी जातियों को खासतौर से नॉन यादव को अपने साथ जोड़ा जाए, क्योंकि अखिलेश यादव को यह भली-भांति पता है कि पिछड़ों ने यूपी में जिसका साथ दे दिया सत्ता की चाबी उसके हाथ लग जाती है. इसीलिए लगातार अखिलेश यादव अब अगले और पिछड़े की बात कर रहे हैं.
यूपी में पिछड़ी जातियां हमेशा से किंगमेकर की भूमिका में रही हैं
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में हमेशा से ही पिछड़ी जातियां किंगमेकर की भूमिका में रही हैं यानी उन्होंने जिसका साथ दे दिया वह सरताज बन जाता है. लगभग प्रदेश में 52 फ़ीसदी ओबीसी वोट बैंक है जिसमें लगभग 8 से 10 फ़ीसदी यादव वोट बैंक है. वहीं 6 से 7 फीसदी लोधी वोट बैंक, 6 से 7 फीसदी के आस पास ही कुर्मी वोट बैंक है, इसके अलावा निषाद बिंद कश्यप राजभर चौहान, मौर्य भी चार से पांच फीसदी के आसपास हैं.
सियासी दल ओबीसी वोट बैंक की ताकत जानते हैं
सियासी दलों को ओबीसी वोट बैंक की ताकत का एहसास है तभी तो प्रदेश में सभी ने सभी दलों ने अपना कमांडर इन चीफ पिछड़ी जाति से आने वाले लीडर को ही बनाया है. चाहे भारतीय जनता पार्टी जिसके प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह है वो भी पिछड़ी जाति से आते हैं या फिर समाजवादी पार्टी हो उसके प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल भी ओबीसी बिरादरी से आते हैं. यहां तक की खुद को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी बताने वाली बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर भी पिछड़ी बिरादरी से आते हैं, कभी अगड़ों की पार्टी रही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी पिछड़ी जाति से आते हैं. फिर चाहे संजय निषाद हो, ओमप्रकाश राजभर हों, केशव देव मौर्य हों, संजय चौहान हों ये सब पिछड़ी बिरादरी से ही आते हैं और हर पार्टी ने पिछड़ी बिरादरी को साधने के लिए अपना चेहरा इसी अन्य पिछड़ी जाति से आने वाले नेता को बनाया है.
लेकिन बात अगर उत्तर प्रदेश चुनाव की हो और जिक्र जातियों का ना आए ऐसा हो नहीं सकता. यूपी में कई ऐसी ओबीसी जातियां हैं, जो संख्या में तो छोटी हैं लेकिन उम्मीदवारों का खेल बनाने और बिगाड़ने की दमखम रखती हैं. 403 सीटों वाली यूपी की राजनीतिक पिच पर अगर किसी भी पार्टी को फ्रंटफुट पर खेलना है तो उसके पास ओबीसी वोटबैंक का समर्थन होना बेहद जरूरी है. कोई भी दल बिना ओबीसी के सपोर्ट के यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बना ही नहीं सकता.
2014 के बाद से बदले हैं सियासी समीकरण
2014 के बाद से बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग के कारण कई छोटे दलों की सियासत गड़बड़ा गई. बीजेपी ने गैर जाटव दलित वोट बैंक और सपा के गैर यादव ओबीसी वोट बैंक में सेंधमारी की है. यह ट्रेंड 2014 के लोकसभा, 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों में देखने को मिला है, जिसका फायदा बीजेपी को साफ मिला. इसी वजह से बीजेपी ने 2017 में सत्ता का स्वाद चखा. 2019 लोकसभा चुनाव में भी सपा बसपा और रालोद के गठबंधन के बावजूद बीजेपी 80 में से 62 लोकसभा सीट जीतने में कामयाब रही थी.
कहां किस जाति का दबदबा
यादव के बाद ओबीसी में सबसे बड़ा कुर्मी समुदाय है. करीब 16 जिलों में 6 से 12 फीसदी तक कुर्मी और पटेल वोट बैंक हैं. इनमें मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और बस्ती जिले प्रमुख हैं.
मौर्य-कुशवाहा
वहीं ओबीसी की मौर्य-शाक्य-सैनी और कुशवाहा जाति की आबादी का 13 जिलों का वोट बैंक 7-10 फीसदी है. इन जिलों में एटा, फिरोजाबाद, मिर्जापुर, कन्नौज, कानपुर देहात, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, हरदोई, मैनपुरी, प्रयागराज, औरैया, इटावा, फर्रुखाबाद शामिल हैं. वहीं मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर में सैनी समाज का दबदबा है.
Uttarakhand Assembly Elections 2022: उत्तराखंड की राजनीति के 4 बड़े मिथक, जिसने हारी ये सीट सूबे में बनती है उसकी सरकार
मल्लाह-निषाद
इनकी आबादी गंगा के किनारे स्थित जिलों में है जैसे चंदौली, मिर्जापुर, वाराणसी, भदोही, प्रयागराज, अयोध्या, जौनपुर, औरैया, गोरखपुर, बलिया.
राजभर
पूर्वांचल में राजभर भी ओबीसी में एक अहम वोटबैंक है. इनकी आबादी भले ही दो फीसदी है. लेकिन कई सीटों पर हार या जीत तय करने का माद्दा रखते हैं. चंदौली, भदोही, वाराणसी, मिर्जापुर, मऊ, आजमगढ़, गाजीपुर, बलिया में इनकी अच्छी खासी तादाद है.
लोध
ओबीसी में एक बड़ा वोट बैंक लोध जाति का है. इनको बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है. यूपी के कई जिलों में लोध समुदाय खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है. इनमें रामपुर, ज्योतिबाफुले नगर, अलीगढ़, महामायानगर, फिरोजाबाद, मैनपुरी, पीलीभीत, लखीमपुर, उन्नाव, शाहजहांपुर, हरदोई, औरैया, जालौन, झांसी, ललितपुर, महोबा जैसे जिले शामिल हैं.
#UPElections2022 #OBC #BJP #Congress #SP #RLD
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले सियासी दलों की नजर पिछड़ा वोट बैंक पर है. सभी राजनीतिक पार्टियां 52 फ़ीसदी वोट बैंक वाले पिछड़ा समाज को अपने पाले में लाने में जुटे हुए हैं. इसके लिए हर पार्टी ने अपनी अलग रणनीति तैयार की है, कोई जिले में सम्मेलन कर रहा है तो कोई लखनऊ में ही ओबीसी की सभी जातियों के सम्मेलन करने में जुटा है. हालांकि मकसद सबका एक ही है कि कैसे चुनाव से पहले अन्य पिछड़ा जाति को अपने साथ जोड़ा जाए और सत्ता पर काबिज हुआ जाए.
अंबेडकर नगर में अखिलेश यादव ने पिछड़ों को लेकर नया नारा बुलंद किया
अंबेडकरनगर में रविवार को अखिलेश यादव भीड़ देखकर इतने गदगद हुए कि उन्होंने एक नया नारा ही दे दिया अखिलेश यादव ने कहा पिछड़ा का इंकलाब होगा, 2022 में बदलाव होगा. दरअसल इस नारे के पीछे ही अखिलेश यादव की रणनीति भी छुपी हुई है.
इस बार चुनाव में अखिलेश यादव की कोशिश है कि कैसे पिछड़ी जातियों को खासतौर से नॉन यादव को अपने साथ जोड़ा जाए, क्योंकि अखिलेश यादव को यह भली-भांति पता है कि पिछड़ों ने यूपी में जिसका साथ दे दिया सत्ता की चाबी उसके हाथ लग जाती है. इसीलिए लगातार अखिलेश यादव अब अगले और पिछड़े की बात कर रहे हैं.
यूपी में पिछड़ी जातियां हमेशा से किंगमेकर की भूमिका में रही हैं
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में हमेशा से ही पिछड़ी जातियां किंगमेकर की भूमिका में रही हैं यानी उन्होंने जिसका साथ दे दिया वह सरताज बन जाता है. लगभग प्रदेश में 52 फ़ीसदी ओबीसी वोट बैंक है जिसमें लगभग 8 से 10 फ़ीसदी यादव वोट बैंक है. वहीं 6 से 7 फीसदी लोधी वोट बैंक, 6 से 7 फीसदी के आस पास ही कुर्मी वोट बैंक है, इसके अलावा निषाद बिंद कश्यप राजभर चौहान, मौर्य भी चार से पांच फीसदी के आसपास हैं.
सियासी दल ओबीसी वोट बैंक की ताकत जानते हैं
सियासी दलों को ओबीसी वोट बैंक की ताकत का एहसास है तभी तो प्रदेश में सभी ने सभी दलों ने अपना कमांडर इन चीफ पिछड़ी जाति से आने वाले लीडर को ही बनाया है. चाहे भारतीय जनता पार्टी जिसके प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह है वो भी पिछड़ी जाति से आते हैं या फिर समाजवादी पार्टी हो उसके प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल भी ओबीसी बिरादरी से आते हैं. यहां तक की खुद को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी बताने वाली बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर भी पिछड़ी बिरादरी से आते हैं, कभी अगड़ों की पार्टी रही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी पिछड़ी जाति से आते हैं. फिर चाहे संजय निषाद हो, ओमप्रकाश राजभर हों, केशव देव मौर्य हों, संजय चौहान हों ये सब पिछड़ी बिरादरी से ही आते हैं और हर पार्टी ने पिछड़ी बिरादरी को साधने के लिए अपना चेहरा इसी अन्य पिछड़ी जाति से आने वाले नेता को बनाया है.
लेकिन बात अगर उत्तर प्रदेश चुनाव की हो और जिक्र जातियों का ना आए ऐसा हो नहीं सकता. यूपी में कई ऐसी ओबीसी जातियां हैं, जो संख्या में तो छोटी हैं लेकिन उम्मीदवारों का खेल बनाने और बिगाड़ने की दमखम रखती हैं. 403 सीटों वाली यूपी की राजनीतिक पिच पर अगर किसी भी पार्टी को फ्रंटफुट पर खेलना है तो उसके पास ओबीसी वोटबैंक का समर्थन होना बेहद जरूरी है. कोई भी दल बिना ओबीसी के सपोर्ट के यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बना ही नहीं सकता.
2014 के बाद से बदले हैं सियासी समीकरण
2014 के बाद से बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग के कारण कई छोटे दलों की सियासत गड़बड़ा गई. बीजेपी ने गैर जाटव दलित वोट बैंक और सपा के गैर यादव ओबीसी वोट बैंक में सेंधमारी की है. यह ट्रेंड 2014 के लोकसभा, 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों में देखने को मिला है, जिसका फायदा बीजेपी को साफ मिला. इसी वजह से बीजेपी ने 2017 में सत्ता का स्वाद चखा. 2019 लोकसभा चुनाव में भी सपा बसपा और रालोद के गठबंधन के बावजूद बीजेपी 80 में से 62 लोकसभा सीट जीतने में कामयाब रही थी.
कहां किस जाति का दबदबा
यादव के बाद ओबीसी में सबसे बड़ा कुर्मी समुदाय है. करीब 16 जिलों में 6 से 12 फीसदी तक कुर्मी और पटेल वोट बैंक हैं. इनमें मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और बस्ती जिले प्रमुख हैं.
मौर्य-कुशवाहा
वहीं ओबीसी की मौर्य-शाक्य-सैनी और कुशवाहा जाति की आबादी का 13 जिलों का वोट बैंक 7-10 फीसदी है. इन जिलों में एटा, फिरोजाबाद, मिर्जापुर, कन्नौज, कानपुर देहात, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, हरदोई, मैनपुरी, प्रयागराज, औरैया, इटावा, फर्रुखाबाद शामिल हैं. वहीं मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर में सैनी समाज का दबदबा है.
Uttarakhand Assembly Elections 2022: उत्तराखंड की राजनीति के 4 बड़े मिथक, जिसने हारी ये सीट सूबे में बनती है उसकी सरकार
मल्लाह-निषाद
इनकी आबादी गंगा के किनारे स्थित जिलों में है जैसे चंदौली, मिर्जापुर, वाराणसी, भदोही, प्रयागराज, अयोध्या, जौनपुर, औरैया, गोरखपुर, बलिया.
राजभर
पूर्वांचल में राजभर भी ओबीसी में एक अहम वोटबैंक है. इनकी आबादी भले ही दो फीसदी है. लेकिन कई सीटों पर हार या जीत तय करने का माद्दा रखते हैं. चंदौली, भदोही, वाराणसी, मिर्जापुर, मऊ, आजमगढ़, गाजीपुर, बलिया में इनकी अच्छी खासी तादाद है.
लोध
ओबीसी में एक बड़ा वोट बैंक लोध जाति का है. इनको बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है. यूपी के कई जिलों में लोध समुदाय खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है. इनमें रामपुर, ज्योतिबाफुले नगर, अलीगढ़, महामायानगर, फिरोजाबाद, मैनपुरी, पीलीभीत, लखीमपुर, उन्नाव, शाहजहांपुर, हरदोई, औरैया, जालौन, झांसी, ललितपुर, महोबा जैसे जिले शामिल हैं.
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